Relationship Story In Hindi |
Best heart touching relationship story in Hindi
राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे।
चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।
साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।
राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे। दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी।
इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।
सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।
नवीन घर मे अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं।
राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने।
सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा"
राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।
वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे।
प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है।
बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी।
फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।
न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया। husband wife relationship story, hindi Kahani
राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"
"चुप रहो माँ"
राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।
फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया।
बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।
राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया।
नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।"
गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी।
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था"
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।"
सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।
"नही चाहिए।
वो दस लाख भी नही चाहिए"
"क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया।
"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।
"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।"
इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।
राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।
राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।
वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।
मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।
सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"
"मैंने नही तलाक तुमने दिया"
"दस्तखत तो तुमने भी किए"
"माफी नही माँग सकते थे?"
"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"
"घर भी आ सकते थे ?
"हिम्मत नही थी?
राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"
मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी।
राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"
फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।
घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है।
उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।
कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?
फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी।
कितने सुनहरे दिन थे वो।
इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।
बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया।
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।
बोला--" मत जाओ... माफ कर दो" Relationship Story In Hindi
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया ।
और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि
कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।
काश उनको पहले मिलने दिया होता?
अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच जाए, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.....Relationship Story In Hindi | husband wife relationship story, Kahani
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raadhika aur naveen ko aaj talak ke kaagaj mil gae the. dono saath hi court se baahar nikale. dono ke parijan saath the aur unake chehare par vijay aur sukun ke nishaan saaf jhalak rahe the. chaar saal ki lambi ladai ke baad aaj faisala ho gaya tha.
das saal ho gaye the shaadi ko magar saath me chhah saal hi rah paye the. chaar saal to talaak ki kaaryavaahi mein lag gaye.
raadhika ke haath me dahej ke samaan ki list thi jo abhi naveen ke ghar se lena tha aur naveen ke haath me gahanon ki list thi jo raadhika se lene the.
saath me court ka yah aadesh bhi tha ki naveen das laakh rupaye ki raashi ekamusht raadhika ko chukayega.
raadhika aur naveen dono ek hi tempo mein baithakar naveen ke ghar pahunche. dahej mein diye samaan ki nishaandehi raadhika ko karanee thi.
isaliye chaar varsh baad sasuraal ja rahi thi. aakhari baar bas usake baad kabhi nahi aana tha udhar. sabhi parijan apane apane ghar ja chuke the.
bas teen praani bache the.naveen, raadhika aur raadhika ki maata jee. naveen ghar me akela hi rahata tha.
maan-baap aur bhai aaj bhi gaanv mein hi rahate hain. raadhika aur naveen ka ikalauta beta jo abhi saat varsh ka hai court ke faisale ke anusaar baalig hone tak vah raadhika ke paas hi rahega.
naveen maheene mein ek baar usase mil sakata hai. ghar me parivesh karate hi puraani yaaden taazi ho gai. kitani mehanat se sajaaya tha isako raadhika ne. ek ek cheej mein usaki jaan basi thi. sab kuchh usaki aankhon ke saamane bana tha.
ek ek int se dheere dheere banate gharonde ko pura hote dekha tha usane. sapano ka ghar tha usaka. kitani shiddat se naveen ne usake sapane ko pura kiya tha. naveen thakaa haara sa sofe par pasar gaya.
bola "le lo jo kuchh bhi chaahiye main tujhe nahi rokunga" raadhika ne ab gaur se naveen ko dekha. chaar saal mein kitana badal gaya hai. baalon mein safedi jhaankane lagi hai. shareer pahale se aadha rah gaya hai. chaar saal mein chehare ki raunak gaayab ho gai.
vah store room ki taraf badhi jahaan usake dahej ka adhikatar samaan pada tha. saamaan old faishon ka tha isaliye kabaad ki tarah store room mein daal diya tha.
mila bhi kitana tha usako dahej. prem vivaah tha dono ka. ghar vaale to majaboori mein saath huye the. prem vivaah tha tabhi to najar lag gai kisi ki.
kyonki premi jodi ko har koi tutata hua dekhana chaahata hai. bas ek baar peekar bahak gaya tha naveen. haath utha baitha tha usapar. bas vo gusse mein maayake chali gai thi.
phir chala tha lagaane sikhaane ka daur . idhar naveen ke bhai bhabhi aur udhar raadhika ki maa. nobat court tak ja pahunchi aur talaak ho gaya.
na raadhika loti aur na naveen laane gaya. raadhika ki maa boli" kahaan hai tera saamaan? idhar to nahi dikhata. bech diya hoga is sharaabi ne ?" "chup raho maa" raadhika ko na jaane kyon naveen ko usake munh par sharaabi kahana achchha nahi laga.
fir store room mein pade saamaan ko ek ek kar list mein milaaya gaya. baaki kamaron se bhi list ka saamaan utha liya gaya. raadhika ne sirf apana saamaan liya naveen ke samaan ko chhuva bhi nahi.
phir raadhika ne naveen ko gahanon se bhara bag pakada diya. naveen ne bag vaapas raadhika ko de diya " rakhalo, mujhe nahi chaahiye kaam aayegen tere museebat mein ." gahanon ki kimmat 15 laakh se kam nahi thi. "kyoon, court mein to tumhara vakeel kitani dafa gahane-gahane chilla raha tha" "
court ki baat court mein khatm ho gai, raadhika. vahaan to mujhe bhi duniya ka sabase bura jaanvar aur sharaabi saabit kiya gaya hai." sunakar raadhika ki maa ne naak bhon chadhai. "nahee chaahiye. vo das laakh bhi nahi chaahiye"
"kyoon?" kahakar naveen sofe se khada ho gaya. "bas yoon hi" raadhika ne munh fer liya. "itani badi jindagi padi hai kaise kaatogi? le jao,,, kaam aayegen." itana kah kar naveen ne bhi munh fer liya aur dusare kamare mein chala gaya.
shaayad aankhon mein kuchh umada hoga jise chhupaana bhi jaruri tha. raadhika ki maata jee gaadi vaale ko phone karane mein vyast thi. raadhika ko mauka mil gaya. vo naveen ke peechhe us kamare mein chali gai. vo ro raha tha. ajeeb sa munh bana kar.
jaise bhitar ke sailaab ko dabaane ki jaddojahad kar raha ho. raadhika ne use kabhi rote huye nahi dekha tha. aaj pahali baar dekha na jaane kyon dil ko kuchh sukoon sa mila. magar jyaada bhaavuk nahi hui. sadhe andaaj mein boli "itani fikr thi to kyon diya talaak?"
"mainne nahi talaak tumane diya" "dastakhat to tumane bhi kiye" "maafi nahi maang sakate the?" "mauka kab diya tumhaare ghar vaalon ne. jab bhi phone kiya kaat diya."
"ghar bhi aa sakate the ?
"himmat nahi thi? raadhika ki maa aa gai. vo usaka haath pakad kar baahar le gai. "ab kyon munh lag rahi hai isake?
ab to rishta bhi khatm ho gaya"
maa-beti baahar baraamade mein sofe par baithakar gaadi ka intajaar karane lagi. raadhika ke bheetar bhi kuchh toot raha tha.
dil baitha ja raha tha. vo sunn si padati ja rahi thi. jis sofe par baithi thi use gaur se dekhane lagi. kaise kaise bachat kar ke usane aur naveen ne vo sofa khareeda tha. poore shahar mein ghoomi tab yah pasand aaya tha."
phir usakee najar saamane tulasi ke sukhe paudhe par gai. kitani shiddat se dekhabhaal kiya karati thi. usake saath tulasi bhi ghar chhod gai. ghabaraahat aur badhi to vah phir se uth kar bheetar chali gai.
maa ne peechhe se pukaara magar usane anasuna kar diya. naveen bed par ulte munh pada tha. ek baar to use daya aai us par. magar vah jaanati thi ki ab to sab kuchh khatm ho chuka hai isaliye use bhaavuk nahi hona hai. usane sarasari najar se kamare ko dekha. ast vyast ho gaya hai poora kamara.
kaheen kanhi to makadi ke jaale jhool rahe hain. kitani nafarat thi use makadi ke jaalon se? phir usaki najar chaaron aur lagi un photo par gai jiname vo naveen se lipat kar muskara rahi thi.
kitane sunahare din the vo. itane mein maa phir aa gai. haath pakad kar phir use baahar le gai. baahar gaadi aa gai thi. saamaan gaadi mein daala ja raha tha. raadhika sun si baithi thi. naveen gaadi ki aavaaj sunakar baahar aa gaya.
achaanak naveen kaan pakad kar ghutano ke bal baith gaya. bola--" mat jao... maaf kar do"
shaayad yahi vo shabd the jinhen sunane ke liye chaar saal se tadap rahi thi. sabr ke saare baandh ek saath toot gaye.
raadhika ne court ke faisale ka kaagaj nikaala aur faad diya . aur maa kuchh kahati usase pahale hi lipat gai naveen se. saath me dono buri tarah rote ja rahe the.
door khadi raadhika ki maa samajh gai ki court ka aadesh dilon ke saamane kaagaj se jyaada kuchh nahi. kaash unako pahale milane diya hota?
agar maafi maangane se hi rishte tutane se bach jaye, to maafi maang leni chaahiye
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