kumar vishwas shayari in hindi |
नमस्कार दोस्तों- कुमार विश्वास आधुनिक हिंदी के लोकप्रिय और प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि और राजनेता हैं, कुमार विश्वास वर्तमान समय के social media और Internet पर follow किए जाने वाले सबसे लोकप्रिय कवि हैं
डॉ कुमार विश्वास जी ने भारत के अलावा सिंगापुर, अमेरिका, दुबई, नेपाल, ब्रिटेन आदि जैसे कई देशों में हिंदी कविता का पाठ किया है
और आज के इस पोस्ट में मैं आप लोगों के लिए dr kumar vishwas की लिखी कुछ चुनिंदा और बेहतरीन रचनाएं लेकर आया हूं जो आपको जरूर पसंद आएंगे अगर आपको यह पोस्ट kumar vishwas poems, kavita, shayari, Quotes, geet पसंद आए तो इसे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें धन्यवाद...
कुमार विश्वास की 10 बेहतरीन कविताएँ | kumar vishwas Top poetry
1. kumar vishwas poem | पगली लड़की
मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है
,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
2. कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें | kumar vishwas kavita
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें
ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में
घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें
उस पल मीठी-सी धुन
घर के आँगन में सुन
रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा
उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में
जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं
अख़बारों में पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन को रातों में, साजन की बाँहों में
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा
उस पल के जीने में
आँसू पी लेने में
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
3. रूपारानी | kumar vishwas poems, kavita, shayari, Quotes
रूपा रानी बड़ी सयानी;
मृगनयनी लौनी छवि वाली,
मधुरिम वचना भोली-भाली;
भरी-भरी पर खाली-खाली।
छोटे कस्बे में रहती थी;
जो गुनती थी सो कहती थी,
दिन भर घर के बासन मलती;
रातों मे दर्पण को छलती।
यों तो सब कुछ ठीक-ठाक था;
फिर भी वो उदास सी रहती,
उनकी काजल आंजी आँखें
सूनेपन की बातें कहती।
जगने उठने में सोने में
कुछ हंसने में कुछ रोने में
थोड़े दिन यूँ ही बीते
खाली खाली रीते रीते
तभी हमारे कवि जी,
तीन लोक से न्यारे कवि जी,
उनके सपनों में आ छाए;
उनको बहुत-बहुत ही भाए।
यूं तो लोगों की नज़रों में
कवि जी कस्बे का कबाड़ थे,
लेकिन उनके ऊपर नीचे
सच्चे झूठे कुछ जुगाड़ थे।
बरस दो बरस में टीवी पर
उनका चेहरा दिख जाता था;
कभी कभी अखबारों में भी
उनका लिखा छप जाता था।
तब वह दुगने हो जाते थे;
सबसे कहते बहुत व्यस्त हूँ,
मरने तक की फुर्सत कब है;
भाग-दौड़ में बड़ा तृस्त हूँ।
रूपा रानी को वो भाए;
उनको रूपा रानी भाई,
जैसे गंगा मैया एक दिन
ऋषिकेष से भू पर आई।
धरती को आकाश मिल गया;
पतझड़ को वनवास मिल गया,
पीड़ा ने निर्वासन पाया;
आँसू को वनवास मिल गया।
रूपा रानी के अधरों पर
चन्दनवन महकाते कवि जी,
कभी फैलते कभी सिमटते;
देर रात घर आते कवि जी।
सोते तो उनके सपनों में
रूपा रानी जगती रहती,
लाख छुपाते सबसे लेकिन;
आँखें मन की बातें कहती।
लेकिन एक दिन हुआ वही
जो पहले से होता आया है,
हंसने वाला हंसने बैठा;
रोया जो रोता आया है।
जैसे राम कथा में
निर्वासन प्रसंग आ जाए,
या फिर हँसते नीलगगन में
श्यामल मेघों का दल छाए।
इसी भांति इस प्रेम कथा में
अपराधी बन आई कविता,
होठों की स्मृत रेखा पर,
धूम्ररेख बन छाई कविता।
रूपा रानी के घरवाले
सबसे कहते हमसे कहते,
यह आवारा काम-धाम कुछ
करता तो हम चुप हो सहते।
बड़ी बैंक का बड़ी रैंक का
एक सुदर्शन दूल्हा आया,
जैसे कोई बीमा वाला
गारंटेड खुशियाँ घर लाया।
शादी की इस धूम-धाम में
अपने कवि जी बहुत व्यस्त थे,
अंदर-अंदर एकाकी थे
बाहर-बाहर बहुत मस्त थे।
बिदा हुई तो खुद ही उसको
दूल्हे जी के पास बिठाया।
तब से कवि जी के अंतस में
पीड़ा जमकर रहती है जी,
लाख छिपाते बातें लेकिन
आँखें सब से कहती हैं जी।
आप पूछते हैं यह किस्सा
कैसे कब और कहाँ हुआ था,
मुझको अब कुछ याद नहीं
इसने मुझको कहाँ छूआ था।
शायद जबसे वाल्मीकि ने
पहली कविता लिखी तबसे,
या जब तुलसी रतनावली के
द्वारे से लौटे थे तब से।
यूं ही सुना दिया यह किस्सा
इसमें कुछ फरियाद नहीं है,
आगे की घटनाएँ सब
मालूम हैं पर याद नहीं है।
मर गया राजा मर गयी रानी
खतम हुई यूं प्रेम कहानी।
बाकी किस्से फिर सुन लेना
आएंगी अनगिनत शाम जी,
अच्छा जी अब चलता हूँ मैं,
राम-राम जी राम-राम जी।
4. लड़कियाँ | kumar vishwas ki kavita
पल भर में जीवन महकायें
पल भर में संसार जलायें
कभी धूप हैं, कभी छाँव हैं
बर्फ कभी अँगार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार
बचपन के जाते ही इनकी
गँध बसे तन-मन में
एक कहानी लिख जाती हैं
ये सबके जीवन में
बचपन की ये विदा-निशानी
यौवन का उपहार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
इनके निर्णय बड़े अजब हैं
बड़ी अजब हैं बातें
दिन की कीमत पर,
गिरवी रख लेती हैं ये रातें
हँसते-गाते कर जाती हैं
आँसू का व्यापार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
जाने कैसे, कब कर बैठें
जान-बूझकर भूलें
किसे प्यास से व्याकुल कर दें
किसे अधर से छू लें
किसका जीवन मरूथल कर दें
किसका मस्त बहार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
इसकी खातिर भूखी-प्यासी
देहें रात भर जागें
उसकी पूजा को ठुकरायें
छाया से भी भागें
इसके सम्मुख छुई-मुई हैं
उसको हैं तलवार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
राजा के सपने मन में हैं
और फकीरें संग हैं
जीवन औरों के हाथों में
खिंची लकीरों संग हैं
सपनों-सी जगमग-जगमग हैं
किस्मत-सी लाचार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
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5. मधुयामिनी | kumar vishwas shayari
क्या अजब रात थी, क्या गज़ब रात थी
दंश सहते रहे, मुस्कुराते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
मन मे अपराध की, एक शंका लिए
कुछ क्रियाये हमें जब हवन सी लगीं
एक दूजे की साँसों मैं घुलती हुई
बोलियाँ भी हमें, जब भजन सी लगीं
कोई भी बात हमने न की रात-भर
प्यार की धुन कोई गुनगुनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
पूर्णिमा की अनघ चांदनी सा बदन
मेरे आगोश मे यूं पिघलता रहा
चूड़ियों से भरे हाथ लिपटे रहे
सुर्ख होठों से झरना सा झरता रहा
इक नशा सा अजब छा गया था की हम
खुद को खोते रहे तुमको पाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
आहटों से बहुत दूर पीपल तले
वेग के व्याकरण पायलों ने गढ़े
साम-गीतों की आरोह - अवरोह में
मौन के चुम्बनी- सूक्त हमने पढ़े
सौंपकर उन अंधेरों को सब प्रश्न हम
इक अनोखी दीवाली मनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
6. बाँसुरी चली आओ | kumar vishwas poems, kavita, shayari, Quotes
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
7. स्मरण गीत | kumar vishwas poems , geet
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं,
हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों,
तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ
योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर,
जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ
गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे कंठ मेरी वेदनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या.?
दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है,
राम से सीता अलग हैं,कृष्ण से राधा अलग हैं,
नियति का हर न्याय सच्चा, हर कलेवर में कला है,
वासना के प्रेत पागल हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हरे माथ मेरी वर्जनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
चल रहे हैं हम पता क्या कब कहाँ कैसे मिलेंगे.?
मार्ग का हर पग हमारी वास्तविकता बोलता है,
गति-नियति दोनों पता हैं उस दीवाने के हृदय को,
जो नयन में नीर लेकर पीर गाता डोलता है,
मानसी-मृग मरूथलों में खो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी योजनायें हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं।
8. मै तुम्हे अधिकार दूँगा | kumar vishwas poetry
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा।
ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्हीं पर वार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा।
तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल,
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हें अधिकार दूँगा।
9. मांग की सिंदूर रेखा | kumar vishwas ki kavita, geet
मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?
तुम कहोगी "वो समर्पण, बचपना था, तो कहेगी,
"गर वो सब कुछ बचपना था, तो कहो फिर प्यार क्या है ?
कल कोई अल्हलड़ अयाना, बावरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर, गंध भर देगा चमन में,
या कोई चंदा धरा का, रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड़ देगा गगन पर,
तब किसी आशीष का आँचल मचल कर पूछ लेगा,
"यह नयन- विनिमय अगर है प्यार तो व्यापार क्या है ?
कल तुम्हरे गंधवाही-केश, जब उड़ कर किसी की,
आखँ को उल्लास का आकाश कर देंगे कहीं पर,
और सांसों के मलयवाही-झकोरे मुझ सरीखे
नव-तरू को सावनी-वातास कर देगे वहीँ पर,
तब यही बिछुए, महावर, चूड़ियाँ, गजरे कहेंगे,
"इस अमर-सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ?
कल कोई दिनकर विजय का, सेहरा सर पर सजाये,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छाँह में सोने चलेगा,
या कोई हारा-थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे,
वक्ष पर धर शीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा,
तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
"इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?
10. सूरज पर प्रतिबंध अनेकों | kumar vishwas poem in hindi
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर,
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले,
कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले
हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्ध स्वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं,
हँसना झूठी बातों पर
हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म कृपाएँ,
हमने सेहरे के संग बाँधी
अपनी सब मासूम खताएँ,
हमने कभी न रखा स्वयं को
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं,
हँसना झूठी बातों पर।
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Conclusion
दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपने kumar vishwas Best poems, kumar vishwas ki kavita, kumar vishwas kavita पढ़ीं, कुमार विश्वास को श्रृंगार रस का कवि माना जाता है, इनके द्वारा लिखा काव्य संग्रह 'कोई दीवाना कहता है' आज युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय है, साथ उन्होंने कई सुंदर कविताएं लिखी हैं जिनमे हिंदी कविता के नवरस मिलते हैं। आपको यह पोस्ट कैसा लगा कृपया कमेन्ट करके जरुर बताएं धन्यवाद...
हेलो सर मुझे आपका पोस्ट काफी अच्छा लगा आपने इस पोस्ट के माध्यम से बहुत अच्छी जानकारियां दी हैं मैं आशा करता हूं कि आप और भी जानकारियां लेटेस्ट लेटेस्ट अपने वेबसाइट पर पोस्ट करेंगे
ReplyDeleteDeepak kumar