TOP 20 Best Hindi Kavitayen | Famous Poems in Hindi
1.उठो लाल अब आँखे खोलो (हिंदी की बेहतरीन कविताएं)
उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लायी हूँ मुंह धो लो।
बीती रात कमल दल फूले,
उसके ऊपर भँवरे झूले,
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे,
बहने लगी हवा अति सुंदर,
नभ में प्यारी लाली छाई,
धरती ने प्यारी छवि पाई।
भोर हुई सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया,
नन्ही नन्ही किरणें आई,
फूल खिले कलियाँ मुस्काई,
इतना सुंदर समय मत खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ।
- अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
utho laal ab aankhen kholo,
paanee laayi hoon munh dho lo.
beeti raat kamal dal phoole,
usake upar bhanvare jhoole,
chidiya chahak uthi pedon pe,
bahane lagi hava ati sundar,
nabh mein pyaari laali chhai,
dharati ne pyaari chhavi pai.
bhor hui sooraj ug aaya,
jal mein padi sunahari chhaaya,
nanhi nanhi kiranen aai,
phool khile kaliyaan muskai,
itana sundar samay mat khovo,
mere pyaare ab mat sovo.
- ayodhya singh upaadhyay hariaudh
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो,
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो।
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो,
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो।
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए,
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो।
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा,
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो।
- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
veer tum badhe chalo,
dheer tum badhe chalo.
haath mein dhwaja rahe baal dal saja rahe,
dhwaj kabhi jhuke nahin dal kabhi ruke nahin,
veer tum badhe chalo! dheer tum badhe chalo.
saamane pahaad ho singh ki dahaad ho,
tum nidar daro nahin tum nidar dato vaheen,
veer tum badhe chalo! dheer tum badhe chalo.
praat ho ki raat ho sang ho na saath ho,
suray se badhe chalo chandr se badhe chalo,
veer tum badhe chalo! dheer tum badhe chalo.
ek dhwaj liye huye ek pran kiye huye,
maatr bhoomi ke liye pitr bhoomi ke liye,
veer tum badhe chalo! dheer tum badhe
chalo.
ann bhoomi mein bhara vaari bhoomi mein bhara,
yatn kar nikaal lo ratn bhar nikaal lo,
veer tum badhe chalo! dheer tum badhe chalo.
- dwarika prasad maaheshvari
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।
- माखनलाल चतुर्वेदी
chaah nahin, main surabaala ke
gahanon mein goontha jaoon,
chaah nahin premi-maala mein bindh
pyaari ko lalachaoon,
chaah nahin samraaton ke shav par
he hari daala jaoon,
chaah nahin devon ke sir par
chadhoon bhaagy par ithalaoon,
mujhe tod lena banamaali,
us path par dena tum fenk.
maatr-bhoomi par sheesh- chadhaane,
jis path par jaaven veer anek.
- makhanalal chaturvedi
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।
- माखनलाल चतुर्वेदी
chaah nahin, main surabaala ke
gahanon mein goontha jaoon,
chaah nahin premi-maala mein bindh
pyaari ko lalachaoon,
chaah nahin samraaton ke shav par
he hari daala jaoon,
chaah nahin devon ke sir par
chadhoon bhaagy par ithalaoon,
mujhe tod lena banamaali,
us path par dena tum fenk.
maatr-bhoomi par sheesh- chadhaane,
jis path par jaaven veer anek.
- makhanalal chaturvedi
बड़े सवेरे मुर्गा बोला,
चिड़ियों ने अपना मुँह खोला,
आसमान में लगा चमकने ,
लाल-लाल सोने का गोला ,
ठंडी हवा बही सुखदायी
सब बोले दिन निकला भाई।
bade savere murga bola,
chidiyon ne apana munh khola,
aasamaan mein laga chamakane ,
laal-laal sone ka gola ,
thandi hava bahi sukhadayi
sab bole din nikala bhai.
बड़े सवेरे मुर्गा बोला,
चिड़ियों ने अपना मुँह खोला,
आसमान में लगा चमकने ,
लाल-लाल सोने का गोला ,
ठंडी हवा बही सुखदायी
सब बोले दिन निकला भाई।
bade savere murga bola,
chidiyon ne apana munh khola,
aasamaan mein laga chamakane ,
laal-laal sone ka gola ,
thandi hava bahi sukhadayi
sab bole din nikala bhai.
फूल-सी हो फूलवाली।
किस सुमन की साँस तुमने
आज अनजाने चुरा ली,
जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची,
तब तुम्हीं ने भर मधुर
मुस्कान कलियाँ सरस सींची,
किंतु दो दिन के सुमन से,
कौन-सी यह प्रीति पाली?
प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते,
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?
मैं करूँ स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।
तुम सजीली हो, सजाती हो
सुहासिनि, ये लताएँ,
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ऋतु में, तुम्हारे गीत गाएँ,
जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली,
फूल सी हो फूलवाली।
- रामकुमार वर्मा
phool-si ho phoolwali.
kis suman ki saans tumane
aaj anajaane chura li,
jab prabha ki rekh dinakar ne
gagan ke beech kheenchi,
tab tumhin ne bhar madhur
muskaan kaliyaan saras seenchi,
kintu do din ke suman se,
kaun-si yah preeti paali?
priy tumhaare roop mein
sukh ke chhipe sanket kyon hain?
aur chitavan mein ulajhate,
prashn sab samavet kyon hain?
main karoon swagat tumhaara,
bhoolakar jag ki pranaali.
tum sajeeli ho, sajaati ho
suhaasini, ye latayen,
kyon na kokil kanth
madhu ritu mein, tumhaare geet gayen,
jab ki mainne yah chhata,
apane hriday ke beech pa li,
phool si ho phoolawali.
- ramkumar varma
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फूल-सी हो फूलवाली।
किस सुमन की साँस तुमने
आज अनजाने चुरा ली,
जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची,
तब तुम्हीं ने भर मधुर
मुस्कान कलियाँ सरस सींची,
किंतु दो दिन के सुमन से,
कौन-सी यह प्रीति पाली?
प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते,
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?
मैं करूँ स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।
तुम सजीली हो, सजाती हो
सुहासिनि, ये लताएँ,
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ऋतु में, तुम्हारे गीत गाएँ,
जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली,
फूल सी हो फूलवाली।
- रामकुमार वर्मा
phool-si ho phoolwali.
kis suman ki saans tumane
aaj anajaane chura li,
jab prabha ki rekh dinakar ne
gagan ke beech kheenchi,
tab tumhin ne bhar madhur
muskaan kaliyaan saras seenchi,
kintu do din ke suman se,
kaun-si yah preeti paali?
priy tumhaare roop mein
sukh ke chhipe sanket kyon hain?
aur chitavan mein ulajhate,
prashn sab samavet kyon hain?
main karoon swagat tumhaara,
bhoolakar jag ki pranaali.
tum sajeeli ho, sajaati ho
suhaasini, ye latayen,
kyon na kokil kanth
madhu ritu mein, tumhaare geet gayen,
jab ki mainne yah chhata,
apane hriday ke beech pa li,
phool si ho phoolawali.
- ramkumar varma
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हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक,
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल,
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर,
बुढ़िया ने सोची तदबीर
जिससे चमक उठी तक़दीर,
मटका एक मंगाया मोल
लंबा लंबा गोल मटोल,
उसमे बैठी बुढ़िया आप
वह ससुराल चली चुपचाप,
बुढ़िया गाती जाती यूँ
चल रे मटके टम्मक टूँ।
huye bahut din budhiya ek
chalati thi laathi ko tek,
usake paas bahut tha maal
jaana tha usako sasuraal,
magar raah mein cheete sher
lete the raahi ko gher,
budhiya ne sochi tadabeer
jisase chamak uthi taqadeer,
mataka ek mangaaya mol
lamba lamba gol matol,
usame baithi budhiya aap
vah sasuraal chali chupchaap,
budhiya gaati jaati yoon
chal re matake tammak tun.
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक,
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल,
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर,
बुढ़िया ने सोची तदबीर
जिससे चमक उठी तक़दीर,
मटका एक मंगाया मोल
लंबा लंबा गोल मटोल,
उसमे बैठी बुढ़िया आप
वह ससुराल चली चुपचाप,
बुढ़िया गाती जाती यूँ
चल रे मटके टम्मक टूँ।
huye bahut din budhiya ek
chalati thi laathi ko tek,
usake paas bahut tha maal
jaana tha usako sasuraal,
magar raah mein cheete sher
lete the raahi ko gher,
budhiya ne sochi tadabeer
jisase chamak uthi taqadeer,
mataka ek mangaaya mol
lamba lamba gol matol,
usame baithi budhiya aap
vah sasuraal chali chupchaap,
budhiya gaati jaati yoon
chal re matake tammak tun.
मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था
अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे ।
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे ,खिले वन
औ' जब फिर से गाढी ऊदी लालसा लिये
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैने कौतूहलवश आँगन के कोने की
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे
भू के अन्चल मे मणि माणिक बाँध दिए हों
मै फिर भूल गया था छोटी से घटना को।
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन
किन्तु एक दिन , जब मै सन्ध्या को आँगन मे
टहल रहा था- तब सह्सा मैने जो देखा ,
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मै विस्मय से
देखा आँगन के कोने मे कई नवागत
छोटी छोटी छाता ताने खडे हुए है
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की;
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं ,प्यारी
जो भी हो , वे हरे हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उडने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोडकर निकले चिडियों के बच्चे से
निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता
सहसा मुझे स्मरण हो आया कुछ दिन पहले ,
बीज सेम के रोपे थे मैने आँगन मे
और उन्ही से बौने पौधौं की यह पलटन
मेरी आँखो के सम्मुख अब खडी गर्व से ,
नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है
तबसे उनको रहा देखता धीरे धीरे
अनगिनती पत्तो से लद भर गयी झाडियाँ
हरे भरे टँग गये कई मखमली चन्दोवे
बेलें फैल गई बल खा , आँगन मे लहरा
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे हरे सौ झरने फूट ऊपर को
मै अवाक रह गया वंश कैसे बढता है
यह धरती कितना देती है "धरती माता"
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे।
- सुमित्रानंदन पंत
maine chhutapan me chhipakar paise boye the
socha tha paison ke pyaare ped ugenge ,
rupayon ki kaldaar madhur fasalen khanakengi ,
aur, phool phalakar mai mota seth banooga
par banjar dharati mein ek na ankur phoota ,
bandhya mitti ne ek bhi paisa ugala
sapane jaane kahaan mite , kab dhul ho gaye .
mai hataash ho , baat johata raha dino tak ,
baal kalpana ke apalak paanvade bichhakar
mai abodh tha, maine galat beej boye the ,
mamata ko ropa tha , trshna ko seencha tha
ardhshati haharatee nikal gayi hai tabase .
kitane hi madhu patjhar beet gaye anjaane
grishm tape , varsha jhulin , sharden musakai
si-si kar hemant kanpe, taru jhare ,khile van
au jab phir se gaadhi udi laalasa liye
gahare kajaraare baadal barase dharati par
maine kautuhalavash aangan ke kone ki
geeli tah ko yon hi ungali se sahalaakar
beej sem ke daba diye mitti ke niche
bhoo ke anchal me mani maanik baandh diye hon
mai phir bhool gaya tha chhoti se ghatana ko.
aur baat bhi kya thi yaad jise rakhata man
kintu ek din , jab mai sandhya ko aangan me
tahal raha tha- tab sahsa maine jo dekha ,
usase harsh vimoodh ho utha mai vismay se
dekha aangan ke kone me kai navagat
chhoti chhoti chhata taane khade hue hai
chhata kahoon ki vijay patakaen jeevan ki;
ya hatheliyaan khole the ve nanhin ,pyaari
jo bhee ho , ve hare hare ullaas se bhare
pankh maarkar udane ko utsuk lagate the
dimb todakar nikale chidiyon ke bachche se
nirnimesh , kshan bhar mai unako raha dekhata
sahasa mujhe ismaran ho aaya kuchh din pahale ,
beej sem ke rope the maine aangan me
aur unhi se baune paudhon ki yah palatan
meree aankho ke sammukh ab khadi garv se ,
nanhe naate pair patak , badhati jaati hai
tabase unako raha dekhata dheere dheere
anginati patto se lad bhar gayi jhaadiyaan
hare bhare tang gaye kai makhamali chandove
belen fail gai bal kha , aangan me lahara
aur sahaara lekar baade koi tatti ka
hare hare sau jharane phoot upar ko
mai avaak rah gaya vansh kaise badhata hai
yah dharati kitana deti hai "dharatee maata"
kitana deti hai apane pyaare putro ko
nahin samajh paaya tha mai usake mahatv ko
bachapan me , chhi: swarth lobhvash paise bokar
ratn prasavini hai vasudha , ab samajh saka hoon
isame sachchi samata ke daane bone hai
isame jan ki kshamata ke daane bone hai
isame maanav mamata ke daane bone hai
jisase ugal sake phir dhool sunahali fasale
maanavata ki - jeevan kshram se hanse dishayen
ham jaisa boenge vaisa hi payenge.
- sumitranandan pant
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मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था
अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे ।
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे ,खिले वन
औ' जब फिर से गाढी ऊदी लालसा लिये
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैने कौतूहलवश आँगन के कोने की
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे
भू के अन्चल मे मणि माणिक बाँध दिए हों
मै फिर भूल गया था छोटी से घटना को।
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन
किन्तु एक दिन , जब मै सन्ध्या को आँगन मे
टहल रहा था- तब सह्सा मैने जो देखा ,
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मै विस्मय से
देखा आँगन के कोने मे कई नवागत
छोटी छोटी छाता ताने खडे हुए है
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की;
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं ,प्यारी
जो भी हो , वे हरे हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उडने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोडकर निकले चिडियों के बच्चे से
निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता
सहसा मुझे स्मरण हो आया कुछ दिन पहले ,
बीज सेम के रोपे थे मैने आँगन मे
और उन्ही से बौने पौधौं की यह पलटन
मेरी आँखो के सम्मुख अब खडी गर्व से ,
नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है
तबसे उनको रहा देखता धीरे धीरे
अनगिनती पत्तो से लद भर गयी झाडियाँ
हरे भरे टँग गये कई मखमली चन्दोवे
बेलें फैल गई बल खा , आँगन मे लहरा
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे हरे सौ झरने फूट ऊपर को
मै अवाक रह गया वंश कैसे बढता है
यह धरती कितना देती है "धरती माता"
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे।
- सुमित्रानंदन पंत
maine chhutapan me chhipakar paise boye the
socha tha paison ke pyaare ped ugenge ,
rupayon ki kaldaar madhur fasalen khanakengi ,
aur, phool phalakar mai mota seth banooga
par banjar dharati mein ek na ankur phoota ,
bandhya mitti ne ek bhi paisa ugala
sapane jaane kahaan mite , kab dhul ho gaye .
mai hataash ho , baat johata raha dino tak ,
baal kalpana ke apalak paanvade bichhakar
mai abodh tha, maine galat beej boye the ,
mamata ko ropa tha , trshna ko seencha tha
ardhshati haharatee nikal gayi hai tabase .
kitane hi madhu patjhar beet gaye anjaane
grishm tape , varsha jhulin , sharden musakai
si-si kar hemant kanpe, taru jhare ,khile van
au jab phir se gaadhi udi laalasa liye
gahare kajaraare baadal barase dharati par
maine kautuhalavash aangan ke kone ki
geeli tah ko yon hi ungali se sahalaakar
beej sem ke daba diye mitti ke niche
bhoo ke anchal me mani maanik baandh diye hon
mai phir bhool gaya tha chhoti se ghatana ko.
aur baat bhi kya thi yaad jise rakhata man
kintu ek din , jab mai sandhya ko aangan me
tahal raha tha- tab sahsa maine jo dekha ,
usase harsh vimoodh ho utha mai vismay se
dekha aangan ke kone me kai navagat
chhoti chhoti chhata taane khade hue hai
chhata kahoon ki vijay patakaen jeevan ki;
ya hatheliyaan khole the ve nanhin ,pyaari
jo bhee ho , ve hare hare ullaas se bhare
pankh maarkar udane ko utsuk lagate the
dimb todakar nikale chidiyon ke bachche se
nirnimesh , kshan bhar mai unako raha dekhata
sahasa mujhe ismaran ho aaya kuchh din pahale ,
beej sem ke rope the maine aangan me
aur unhi se baune paudhon ki yah palatan
meree aankho ke sammukh ab khadi garv se ,
nanhe naate pair patak , badhati jaati hai
tabase unako raha dekhata dheere dheere
anginati patto se lad bhar gayi jhaadiyaan
hare bhare tang gaye kai makhamali chandove
belen fail gai bal kha , aangan me lahara
aur sahaara lekar baade koi tatti ka
hare hare sau jharane phoot upar ko
mai avaak rah gaya vansh kaise badhata hai
yah dharati kitana deti hai "dharatee maata"
kitana deti hai apane pyaare putro ko
nahin samajh paaya tha mai usake mahatv ko
bachapan me , chhi: swarth lobhvash paise bokar
ratn prasavini hai vasudha , ab samajh saka hoon
isame sachchi samata ke daane bone hai
isame jan ki kshamata ke daane bone hai
isame maanav mamata ke daane bone hai
jisase ugal sake phir dhool sunahali fasale
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ham jaisa boenge vaisa hi payenge.
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थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले,
कहा चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ।
इधर प्रयाग न गंगा सागर इधर न रामेश्वर काशी,
इधर कहा है तीर्थ तुम्हारा कहा चले तुम सन्यासी ।
चले झूमते मस्ती से क्या तुम अपना पथ आये भूल,
कहा तुम्हारा दीप जलेगा कहा चढ़ेगा माला फूल ।
मुझे न जाना गंगा सागर मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखे प्यासी ।
अपने अटल स्वतंत्र दुर्ग पर सुनकर वैरी की बोली,
निकल पड़ी लेकर तलवारें जहाँ जवानों की टोली ।
जहाँ आन पर माँ बहनों ने जल-जला पवन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर में जय माँ की जय-जय बोली ।
सुन्दरियों ने जहाँ देश हित जौहर व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ पर बच्चों ने भी मरना सीखा ।
वही जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल,
वही हमारा दीप जलेगा वही चढेगा माला फूल ।
जहाँ पदमिनी जौहर व्रत करती चढ़ी चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वही समाधी लगी बैठ इसी मृग छाला पर ।
- श्यामनारायण पाण्डेय
thaal sajaakar kise poojane chale praat hi matavaale,
kaha chale tum raam naam ka peetaambar tan par daale .
idhar prayaag na ganga saagar idhar na raameshvar kaashi,
idhar kaha hai teerth tumhara kaha chale tum sanyaasi .
chale jhoomate masti se kya tum apana path aaye bhool,
kaha tumhaara deep jalega kaha chadhega maala phool .
mujhe na jaana ganga saagar mujhe na raameshvar kaashi,
teerthraaj chittaud dekhane ko meri aankhe pyaasi .
apane atal svatantr durg par sunakar vairi ki boli,
nikal padi lekar talawaren jahaan jawanon ki toli .
jahaan aan par maan bahanon ne jal-jala pavan holi,
veer mandali garvit swar mein jay maan ki jay-jay boli .
sundariyon ne jahaan desh hit jauhar vrat karana seekha,
svatantrata ke liye jahaan par bachchon ne bhi marana seekha .
vahee ja raha pooja karane lene satiyon ki pad dhool,
vahi hamaara deep jalega vahi chadhega maala phool .
jahaan padmini jauhar vrat karati chadhi chita ki jwala par,
kshan bhar vahi samaadhi lagi baith isi mrg chhaala par .
- shyamnarayan pandey
थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले,
कहा चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले ।
इधर प्रयाग न गंगा सागर इधर न रामेश्वर काशी,
इधर कहा है तीर्थ तुम्हारा कहा चले तुम सन्यासी ।
चले झूमते मस्ती से क्या तुम अपना पथ आये भूल,
कहा तुम्हारा दीप जलेगा कहा चढ़ेगा माला फूल ।
मुझे न जाना गंगा सागर मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखे प्यासी ।
अपने अटल स्वतंत्र दुर्ग पर सुनकर वैरी की बोली,
निकल पड़ी लेकर तलवारें जहाँ जवानों की टोली ।
जहाँ आन पर माँ बहनों ने जल-जला पवन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर में जय माँ की जय-जय बोली ।
सुन्दरियों ने जहाँ देश हित जौहर व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहाँ पर बच्चों ने भी मरना सीखा ।
वही जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल,
वही हमारा दीप जलेगा वही चढेगा माला फूल ।
जहाँ पदमिनी जौहर व्रत करती चढ़ी चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वही समाधी लगी बैठ इसी मृग छाला पर ।
- श्यामनारायण पाण्डेय
thaal sajaakar kise poojane chale praat hi matavaale,
kaha chale tum raam naam ka peetaambar tan par daale .
idhar prayaag na ganga saagar idhar na raameshvar kaashi,
idhar kaha hai teerth tumhara kaha chale tum sanyaasi .
chale jhoomate masti se kya tum apana path aaye bhool,
kaha tumhaara deep jalega kaha chadhega maala phool .
mujhe na jaana ganga saagar mujhe na raameshvar kaashi,
teerthraaj chittaud dekhane ko meri aankhe pyaasi .
apane atal svatantr durg par sunakar vairi ki boli,
nikal padi lekar talawaren jahaan jawanon ki toli .
jahaan aan par maan bahanon ne jal-jala pavan holi,
veer mandali garvit swar mein jay maan ki jay-jay boli .
sundariyon ne jahaan desh hit jauhar vrat karana seekha,
svatantrata ke liye jahaan par bachchon ne bhi marana seekha .
vahee ja raha pooja karane lene satiyon ki pad dhool,
vahi hamaara deep jalega vahi chadhega maala phool .
jahaan padmini jauhar vrat karati chadhi chita ki jwala par,
kshan bhar vahi samaadhi lagi baith isi mrg chhaala par .
- shyamnarayan pandey
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला,
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का,
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ,
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है,
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये ।
- रामधारी सिंह "दिनकर"
hath kar baitha chaand ek din, maata se yah bola
silava do maan mujhe oon ka mota ek jhingola,
san-san chalati hawa raat bhar jaade se marata hoon
thithur-thithur kar kisi tarah yaatra poori karata hoon.
aasamaan ka safar aur yah mausam hai jaade ka
na ho agar to la do kurta hi ko bhaade ka,
bachche ki sun baat, kaha maata ne are salone`
kushal kare bhagwaan, lage mat tujhako jaadoo tone.
jaade ki to baat theek hai, par main to darati hoon
ek naap mein kabhi nahin tujhako dekha karati hoon,
kabhi ek angul bhar chauda, kabhi ek fut mota
bada kisi din ho jaata hai, aur kisi din chhota.
ghatata-badhata roj, kisi din aisa bhi karata hai
nahin kisi ki bhi aankhon ko dikhalai padata hai,
ab tu hi ye bata, naap teri kis roj liwayen
see de ek jhingola jo har roj badan mein aaye .
- raamdhari singh "dinkar"
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला,
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का,
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ,
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है,
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये ।
- रामधारी सिंह "दिनकर"
hath kar baitha chaand ek din, maata se yah bola
silava do maan mujhe oon ka mota ek jhingola,
san-san chalati hawa raat bhar jaade se marata hoon
thithur-thithur kar kisi tarah yaatra poori karata hoon.
aasamaan ka safar aur yah mausam hai jaade ka
na ho agar to la do kurta hi ko bhaade ka,
bachche ki sun baat, kaha maata ne are salone`
kushal kare bhagwaan, lage mat tujhako jaadoo tone.
jaade ki to baat theek hai, par main to darati hoon
ek naap mein kabhi nahin tujhako dekha karati hoon,
kabhi ek angul bhar chauda, kabhi ek fut mota
bada kisi din ho jaata hai, aur kisi din chhota.
ghatata-badhata roj, kisi din aisa bhi karata hai
nahin kisi ki bhi aankhon ko dikhalai padata hai,
ab tu hi ye bata, naap teri kis roj liwayen
see de ek jhingola jo har roj badan mein aaye .
- raamdhari singh "dinkar"
चन्दन है इस देश की माटी
तपोभूमि हर ग्राम है,
हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम है,
जहां के सैनिक समरभूमि में
गाया करते गीता है,
जहां खेत में हल के नीचे
खेला करती सीता है,
ज्ञान जहां का गंगाजल सा
निर्मल हर अभिराम है ।
chandan hai is desh ki maati
tapobhoomi har graam hai,
har baala devi ki pratima
bachcha bachcha ram hai,
jahaan ke sainik samarbhoomi mein
gaaya karate geeta hai,
jahaan khet mein hal ke neeche khela
karati seeta hai,
gyaan jahaan ka gangaajal sa
nirmal har abhiraam hai .
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तपोभूमि हर ग्राम है,
हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम है,
जहां के सैनिक समरभूमि में
गाया करते गीता है,
जहां खेत में हल के नीचे
खेला करती सीता है,
ज्ञान जहां का गंगाजल सा
निर्मल हर अभिराम है ।
chandan hai is desh ki maati
tapobhoomi har graam hai,
har baala devi ki pratima
bachcha bachcha ram hai,
jahaan ke sainik samarbhoomi mein
gaaya karate geeta hai,
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karati seeta hai,
gyaan jahaan ka gangaajal sa
nirmal har abhiraam hai .
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12. भिक्षुक (Famous Poems in Hindi )
वह आता....
दो टूक कलेजे के करता
पछताता, पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक...
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुंह फटी पुरानी झोली का फैलाता...
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता,
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बाएं से वे मलते पेट को चलते,
और दाहिना दयादृष्टि पाने की ओर बढ़ाए...
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता भाग्य विधाता से क्या पाते...
घूंट आंसुओं के पीकर रह जाते...
चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए ।
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
vah aata....
do took kaleje ke karata
pachhtata, path par aata
pet peeth donon milakar hain ek,
chal raha lakutiya tek...
mutthi bhar daane ko, bhookh mitaane ko,
munh fati purani jholi ka failata...
do took kaleje ke karata
pachhatata path par aata,
saath do bachche bhi hain sada haath failaye
bayen se ve malate pet ko chalate,
aur dahina dayadrshti paane ki or badhaye...
bhookh se sukh onth jab jaate
daata bhaagy vidhaata se kya paate...
ghunt aansuon ke peekar rah jaate...
chaat rahe hain joothi pattal kabhi sadak par khade huye,
aur jhapat lene ko unase kutte bhi hain ade hue .
- surayakant tripathi "nirala"
वह आता....
दो टूक कलेजे के करता
पछताता, पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक...
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुंह फटी पुरानी झोली का फैलाता...
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता,
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बाएं से वे मलते पेट को चलते,
और दाहिना दयादृष्टि पाने की ओर बढ़ाए...
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता भाग्य विधाता से क्या पाते...
घूंट आंसुओं के पीकर रह जाते...
चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए ।
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
vah aata....
do took kaleje ke karata
pachhtata, path par aata
pet peeth donon milakar hain ek,
chal raha lakutiya tek...
mutthi bhar daane ko, bhookh mitaane ko,
munh fati purani jholi ka failata...
do took kaleje ke karata
pachhatata path par aata,
saath do bachche bhi hain sada haath failaye
bayen se ve malate pet ko chalate,
aur dahina dayadrshti paane ki or badhaye...
bhookh se sukh onth jab jaate
daata bhaagy vidhaata se kya paate...
ghunt aansuon ke peekar rah jaate...
chaat rahe hain joothi pattal kabhi sadak par khade huye,
aur jhapat lene ko unase kutte bhi hain ade hue .
- surayakant tripathi "nirala"
13. बारहमासी (हिंदी में लिखी हुई Best कविताएँ)
चैत लिये फूलों की डाली
महकाने को आता,
लू के झोंकों में पलकर
वैषाख तभी आ जाता।
और ज्येष्ठ दुपहर भर तपकर
आंधी पानी लाता,
वर्षा के रिमझिम गीतों को
गा आषाढ़ सुनाता।
राखी के धागों में बंधकर
सावन झूम झुलाता,
नदी और सागर में पानी
भरने भादों आता।
लिये कांस के फूल गोद में
क्वांर तभी मुसकाता,
ज्वार बाजरे की बालों से
कार्तिक खेत सजाता।
अगहन गन्नों में रस भरता
खेतों को लहराता,
कंबल और रजाई की यादें
पूस ही ताजा करता।
माघ देखकर सरसों फूली
फूला नहीं समाता,
फागुन आमों की बौरों से
बागों को महकाता।
chait liye phoolon ki daali
mahakaane ko aata,
loo ke jhonkon mein palakar
vaishakh tabhi aa jaata.
aur jyeshth dupahar bhar tapakar
aandhi paani laata,
varsha ke rimajhim geeton ko
ga aashadh sunaata.
raakhi ke dhaagon mein bandhakar
saavan jhoom jhulaata,
nadi aur saagar mein paani
bharane bhaadon aata.
liye kaans ke phool god mein
kvaanr tabhi musakaata,
jwar baajare ki baalon se
kaartik khet sajaata.
agahan gannon mein ras bharata
kheton ko laharaata,
kambal aur rajai ki yaaden
poos hi taaja karata.
maagh dekhakar sarason phooli
phoola nahin samaata,
phalgun aamon ki bauron se
baagon ko mahakaata.
चैत लिये फूलों की डाली
महकाने को आता,
लू के झोंकों में पलकर
वैषाख तभी आ जाता।
और ज्येष्ठ दुपहर भर तपकर
आंधी पानी लाता,
वर्षा के रिमझिम गीतों को
गा आषाढ़ सुनाता।
राखी के धागों में बंधकर
सावन झूम झुलाता,
नदी और सागर में पानी
भरने भादों आता।
लिये कांस के फूल गोद में
क्वांर तभी मुसकाता,
ज्वार बाजरे की बालों से
कार्तिक खेत सजाता।
अगहन गन्नों में रस भरता
खेतों को लहराता,
कंबल और रजाई की यादें
पूस ही ताजा करता।
माघ देखकर सरसों फूली
फूला नहीं समाता,
फागुन आमों की बौरों से
बागों को महकाता।
chait liye phoolon ki daali
mahakaane ko aata,
loo ke jhonkon mein palakar
vaishakh tabhi aa jaata.
aur jyeshth dupahar bhar tapakar
aandhi paani laata,
varsha ke rimajhim geeton ko
ga aashadh sunaata.
raakhi ke dhaagon mein bandhakar
saavan jhoom jhulaata,
nadi aur saagar mein paani
bharane bhaadon aata.
liye kaans ke phool god mein
kvaanr tabhi musakaata,
jwar baajare ki baalon se
kaartik khet sajaata.
agahan gannon mein ras bharata
kheton ko laharaata,
kambal aur rajai ki yaaden
poos hi taaja karata.
maagh dekhakar sarason phooli
phoola nahin samaata,
phalgun aamon ki bauron se
baagon ko mahakaata.
14. पथ मेरा आलोकित कर दो (बेस्ट हिंदी कविताएं)
पथ मेरा आलोकित कर दो
नवल प्रात की रश्मियों से
मेरे उर का तम हर दो।
मैं नन्हा-सा पथिक विश्व के
पथ पर चलना सीख रहा हूँ,
मैं नन्हा-सा विहग विश्व के
नभ पर उड़ना सीख रहा हूँ,
पहुँच सकूं निर्दिष्ट लक्ष्य पर
मुझको ऐसे पग दो,पर दो।
पाया जग से जितना अब तक
और अभी जितना मैं पाऊँ,
मनोकामना है यह मेरी
उससे कहीं अधिक दे जाऊँ,
धरती को ही स्वर्ग बनाने का
मुझको मंगलमय वर दो।
path mera aalokit kar do
naval praat ki rashmiyon se
mere ur ka tam har do.
main nanha-sa pathik vishv ke
path par chalana seekh raha hoon,
main nanha-sa vihag vishv ke
nabh par udana seekh raha hoon,
pahunch sakoon nirdisht lakshy par
mujhako aise pag do,par do.
paaya jag se jitana ab tak
aur abhi jitana main paoon,
manokaamana hai yah meree
usase kaheen adhik de jaoon,
dharati ko hi swarg banaane ka
mujhako mangalamay var do.
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पथ मेरा आलोकित कर दो
नवल प्रात की रश्मियों से
मेरे उर का तम हर दो।
मैं नन्हा-सा पथिक विश्व के
पथ पर चलना सीख रहा हूँ,
मैं नन्हा-सा विहग विश्व के
नभ पर उड़ना सीख रहा हूँ,
पहुँच सकूं निर्दिष्ट लक्ष्य पर
मुझको ऐसे पग दो,पर दो।
पाया जग से जितना अब तक
और अभी जितना मैं पाऊँ,
मनोकामना है यह मेरी
उससे कहीं अधिक दे जाऊँ,
धरती को ही स्वर्ग बनाने का
मुझको मंगलमय वर दो।
path mera aalokit kar do
naval praat ki rashmiyon se
mere ur ka tam har do.
main nanha-sa pathik vishv ke
path par chalana seekh raha hoon,
main nanha-sa vihag vishv ke
nabh par udana seekh raha hoon,
pahunch sakoon nirdisht lakshy par
mujhako aise pag do,par do.
paaya jag se jitana ab tak
aur abhi jitana main paoon,
manokaamana hai yah meree
usase kaheen adhik de jaoon,
dharati ko hi swarg banaane ka
mujhako mangalamay var do.
15. बन्दर मुझे बना दे राम (हिंदी बाल कविता /Famous Kavitayen in Hindi)
बन्दर मुझे बना दे राम,
लम्बी पूँछ लगा दे राम
पेडो पर चढ़ जाऊँगा,
मीठे फल मैं खाऊँगा
सब को खूब हँसाऊँगा ।
bandar mujhe bana de ram,
lambi poonchh laga de ram
pedo par chadh jaunga,
meethe fal main khaunga
sab ko khoob hansaunga .
बन्दर मुझे बना दे राम,
लम्बी पूँछ लगा दे राम
पेडो पर चढ़ जाऊँगा,
मीठे फल मैं खाऊँगा
सब को खूब हँसाऊँगा ।
bandar mujhe bana de ram,
lambi poonchh laga de ram
pedo par chadh jaunga,
meethe fal main khaunga
sab ko khoob hansaunga .
16. बसंती हवा (Hindi ki Best Kavitayen)
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी..
अनोखी हवा हूँ
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ।
न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी।
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
- केदारनाथ अग्रवाल
hawa hoon, hawa main
basanti hawa hoon.
suno baat meri..
anokhi hawa hoon
badi bavali hoon,
badi mastamaula
nahin kuchh fikar hai,
badi hi nidar hoon
jidhar chaahati hoon,
udhar ghumati hoon,
musaafir ajab hoon.
na ghar-baar mera,
na uddeshy mera,
na ichchha kisi ki,
na aasha kisi ki,
na premi na dushman,
jidhar chaahati hoon
udhar ghoomati hoon.
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
jahaan se chali main
jahaan ko gai main
shahar, gaanv, basti,
nadi, ret, nirjan,
hare khet, pokhar,
jhulaati chali main.
jhumaatee chali main
hawa hoon, hawa mai
basanti hawa hoon.
chadhi ped mahua,
thapaathap machaaya;
giri dhamm se phir,
chadhi aam upar,
use bhi jhakora,
kiya kaan mein koo,
utarakar main bhagi,
hare khet pahunchi
vahaan, genhunon mein
lahar khoob maari.
pahar do pahar kya,
anekon pahar tak
isi mein rahi main
khadi dekh alasi
liye sheesh kalasi,
mujhe khoob sujhi
hilaaya-jhulaaya
giri par na kalasi.
isee haar ko pa,
hilai na sarason,
jhulai na sarason,
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
mujhe dekhate hi
arahari lajai,
manaaya-banaaya,
na maani, na maani;
use bhee na chhoda
pathik aa raha tha,
usi par dhakela;
hansi zor se main,
hansi sab dishaen,
hanse lahalahaate
hare khet saare,
hansi chamachamaati
bhari dhoop pyaari;
basantee hawa mein
hansi srshti saari
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
- kedaranath agrwal
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हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी..
अनोखी हवा हूँ
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ।
न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी।
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ ।
- केदारनाथ अग्रवाल
hawa hoon, hawa main
basanti hawa hoon.
suno baat meri..
anokhi hawa hoon
badi bavali hoon,
badi mastamaula
nahin kuchh fikar hai,
badi hi nidar hoon
jidhar chaahati hoon,
udhar ghumati hoon,
musaafir ajab hoon.
na ghar-baar mera,
na uddeshy mera,
na ichchha kisi ki,
na aasha kisi ki,
na premi na dushman,
jidhar chaahati hoon
udhar ghoomati hoon.
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
jahaan se chali main
jahaan ko gai main
shahar, gaanv, basti,
nadi, ret, nirjan,
hare khet, pokhar,
jhulaati chali main.
jhumaatee chali main
hawa hoon, hawa mai
basanti hawa hoon.
chadhi ped mahua,
thapaathap machaaya;
giri dhamm se phir,
chadhi aam upar,
use bhi jhakora,
kiya kaan mein koo,
utarakar main bhagi,
hare khet pahunchi
vahaan, genhunon mein
lahar khoob maari.
pahar do pahar kya,
anekon pahar tak
isi mein rahi main
khadi dekh alasi
liye sheesh kalasi,
mujhe khoob sujhi
hilaaya-jhulaaya
giri par na kalasi.
isee haar ko pa,
hilai na sarason,
jhulai na sarason,
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
mujhe dekhate hi
arahari lajai,
manaaya-banaaya,
na maani, na maani;
use bhee na chhoda
pathik aa raha tha,
usi par dhakela;
hansi zor se main,
hansi sab dishaen,
hanse lahalahaate
hare khet saare,
hansi chamachamaati
bhari dhoop pyaari;
basantee hawa mein
hansi srshti saari
hawa hoon, hawa main
basantee hawa hoon .
- kedaranath agrwal
17. माँ कह एक कहानी (Best Kavitayen in Hindi)
माँ कह एक कहानी।
बेटा समझ लिया क्या
तूने मुझको अपनी नानी?
"कहती है मुझसे यह चेटी,
तू मेरी नानी की बेटी,
कह माँ कह लेटी ही लेटी,
राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।
तू है हठी, मानधन मेरे,
सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
जहाँ सुरभि मनमानी,
जहाँ सुरभि मनमानी,
हाँ माँ यही कहानी।
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे,
झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी,
लहराता था पानी,
हाँ हाँ यही कहानी।
गाते थे खग कल कल स्वर से,
सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से,
हुई पक्षी की हानी,
हुई पक्षी की हानी?
करुणा भरी कहानी।
चौंक उन्होंने उसे उठाया,
नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया,
लक्ष सिद्धि का मानी,
"लक्ष सिद्धि का मानी,
कोमल कठिन कहानी।
माँगा उसने आहत पक्षी,
तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी,
हठ करने की ठानी,
हठ करने की ठानी,
अब बढ़ चली कहानी।
हुआ विवाद सदय निर्दय में,
उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में,
सुनी सब ने जानी।
सुनी सब ने जानी,
व्यापक हुई कहानी।
राहुल तू निर्णय कर इसका,
न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दो निर्भय जय हो जिसका,
सुन लूँ तेरी वाणी,
माँ मेरी क्या बानी?
मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे
तो क्यों न अन्य उसे उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे,
न्याय दया का दानी,
न्याय दया का दानी,
तूने गुणी कहानी।
- मैथिलीशरण गुप्त
maa kah ek kahaani.
beta samajh liya kya
tune mujhako apani naani?
"kahati hai mujhase yah cheti,
tu meri naani ki beti,
kah maa kah leti hi leti,
raja tha ya rani?
maa kah ek kahaani.
tu hai hathi, maanadhan mere,
sun upvan mein bade savere,
taat bhrman karate the tere,
jahaan surabhi manamaani,
jahaan surabhi manamaani,
haan maa yahi kahaani.
varn varn ke phool khile the,
jhalamal kar himabindu jhile the,
halake jhonke hile mile the,
laharata tha pani,
laharata tha pani,
haan haan yahi kahaani.
gaate the khag kal kal swar se,
sahasa ek hans upar se,
gira biddh hokar khar shar se,
hui pakshi ki haani,
hui pakshi ki haani?
karuna bhari kahaani.
chaunk unhonne use uthaaya,
naya janm sa usane paya,
itane mein aakhetak aaya,
laksh siddhi ka maani,
"laksh siddhi ka maani,
komal kathin kahaani.
maanga usane aahat pakshi,
tere taat kintu the rakshi,
tab usane jo tha khagbhakshi,
hath karane ki thaani,
hath karane ki thaani,
ab badh chali kahaani.
hua vivad saday nirday mein,
ubhay aagrahi the svavishay mein,
gayi baat tab nyayaalay mein,
suni sab ne jaani.
suni sab ne jaani,
vyaapak hui kahaani.
raahul tu nirnay kar isaka,
nyaay paksh leta hai kisaka?
kah do nirbhay jay ho jisaka,
sun loon teri vaani,
maan meri kya baani?
main sun raha kahaani.
koi niraparaadh ko maare
to kyon na any use ubaare?
rakshak par bhakshak ko vaare,
nyaay daya ka daani,
nyaay daya ka daani,
tune guni kahaani.
- maithelisharan gupt
माँ कह एक कहानी।
बेटा समझ लिया क्या
तूने मुझको अपनी नानी?
"कहती है मुझसे यह चेटी,
तू मेरी नानी की बेटी,
कह माँ कह लेटी ही लेटी,
राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।
तू है हठी, मानधन मेरे,
सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
जहाँ सुरभि मनमानी,
जहाँ सुरभि मनमानी,
हाँ माँ यही कहानी।
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे,
झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी,
लहराता था पानी,
हाँ हाँ यही कहानी।
गाते थे खग कल कल स्वर से,
सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से,
हुई पक्षी की हानी,
हुई पक्षी की हानी?
करुणा भरी कहानी।
चौंक उन्होंने उसे उठाया,
नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया,
लक्ष सिद्धि का मानी,
"लक्ष सिद्धि का मानी,
कोमल कठिन कहानी।
माँगा उसने आहत पक्षी,
तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी,
हठ करने की ठानी,
हठ करने की ठानी,
अब बढ़ चली कहानी।
हुआ विवाद सदय निर्दय में,
उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में,
सुनी सब ने जानी।
सुनी सब ने जानी,
व्यापक हुई कहानी।
राहुल तू निर्णय कर इसका,
न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दो निर्भय जय हो जिसका,
सुन लूँ तेरी वाणी,
माँ मेरी क्या बानी?
मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे
तो क्यों न अन्य उसे उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे,
न्याय दया का दानी,
न्याय दया का दानी,
तूने गुणी कहानी।
- मैथिलीशरण गुप्त
maa kah ek kahaani.
beta samajh liya kya
tune mujhako apani naani?
"kahati hai mujhase yah cheti,
tu meri naani ki beti,
kah maa kah leti hi leti,
raja tha ya rani?
maa kah ek kahaani.
tu hai hathi, maanadhan mere,
sun upvan mein bade savere,
taat bhrman karate the tere,
jahaan surabhi manamaani,
jahaan surabhi manamaani,
haan maa yahi kahaani.
varn varn ke phool khile the,
jhalamal kar himabindu jhile the,
halake jhonke hile mile the,
laharata tha pani,
laharata tha pani,
haan haan yahi kahaani.
gaate the khag kal kal swar se,
sahasa ek hans upar se,
gira biddh hokar khar shar se,
hui pakshi ki haani,
hui pakshi ki haani?
karuna bhari kahaani.
chaunk unhonne use uthaaya,
naya janm sa usane paya,
itane mein aakhetak aaya,
laksh siddhi ka maani,
"laksh siddhi ka maani,
komal kathin kahaani.
maanga usane aahat pakshi,
tere taat kintu the rakshi,
tab usane jo tha khagbhakshi,
hath karane ki thaani,
hath karane ki thaani,
ab badh chali kahaani.
hua vivad saday nirday mein,
ubhay aagrahi the svavishay mein,
gayi baat tab nyayaalay mein,
suni sab ne jaani.
suni sab ne jaani,
vyaapak hui kahaani.
raahul tu nirnay kar isaka,
nyaay paksh leta hai kisaka?
kah do nirbhay jay ho jisaka,
sun loon teri vaani,
maan meri kya baani?
main sun raha kahaani.
koi niraparaadh ko maare
to kyon na any use ubaare?
rakshak par bhakshak ko vaare,
nyaay daya ka daani,
nyaay daya ka daani,
tune guni kahaani.
- maithelisharan gupt
18. अगर पेड भी चलते होते (हिंदी की बेहतरीन बाल कविताएं)
अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते,
बांध तने में उसके रस्सी
चाहे जहाँ कहीं ले जाते
जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते,
लगती भूख यदि अचानक
तोड मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड-बाढ क़हीं तो
झट उसके उपर चढ ज़ाते,
अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते
- डॉ. दिविक रमेश
agar ped bhi chalate hote
kitane maje hamaare hote,
baandh tane mein usake rassi
chaahe jahaan kaheen le jaate
jahaan kaheen bhi dhoop sataati
usake neeche jhat sustaate,
jahaan kaheen varsha ho jaati
usake neeche ham chhip jaate,
lagati bhookh yadi achaanak
tod madhur fal usake khaate,
aati keechad-baadh kaheen to
jhat usake upar chadh jate,
agar ped bhi chalate hote
kitane maje hamaare hote -
dr. divik ramesh
अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते,
बांध तने में उसके रस्सी
चाहे जहाँ कहीं ले जाते
जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते,
लगती भूख यदि अचानक
तोड मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड-बाढ क़हीं तो
झट उसके उपर चढ ज़ाते,
अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते
- डॉ. दिविक रमेश
agar ped bhi chalate hote
kitane maje hamaare hote,
baandh tane mein usake rassi
chaahe jahaan kaheen le jaate
jahaan kaheen bhi dhoop sataati
usake neeche jhat sustaate,
jahaan kaheen varsha ho jaati
usake neeche ham chhip jaate,
lagati bhookh yadi achaanak
tod madhur fal usake khaate,
aati keechad-baadh kaheen to
jhat usake upar chadh jate,
agar ped bhi chalate hote
kitane maje hamaare hote -
dr. divik ramesh
19. पापा क्यों अच्छा लगता है (hindi kavitayen/ प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ)
पापा क्यों अच्छा लगता है
अपना प्यारा-प्यारा घर?
घूम-घाम लें, खेल-खाल लें
नहीं भूलता लेकिन घर।
नहीं आपको लगता पापा
है माँ की गोदी-सा घर,
प्यारी-प्यारी ममता वाला
सुंदर-सुंदर न्यारा घर।
थककर जब वापस आते हैं
कैसे बिछ-बिछ जाता घर,
खिला-पिला आराम दिलाकर
नई ताजगी देता घर।
पर पापा, इक बात बताओ
नहीं न होता सबका घर,
क्या करते होंगे वे बच्चे
जिनके पास नहीं है घर?
- डॉ. दिविक रमेश
papa kyon achchha lagata hai
apana pyara-pyara ghar?
ghoom-ghaam len, khel-khaal len
nahin bhulata lekin ghar.
nahin aapako lagata papa
hai maa ki godi-sa ghar,
pyaari-pyaari mamata wala
sundar-sundar nyaara ghar.
thakakar jab wapas aate hain
kaise bichh-bichh jaata ghar,
khila-pila aaraam dilaakar
nai taajagi deta ghar.
par paapa, ik baat batao
nahin na hota sabaka ghar,
kya karate honge ve bachche
jinake paas nahin hai ghar?
- dr. divik ramesh
20. वीरों का कैसा हो बसंत ( बेस्ट हिंदी कविताएं)
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
- सुभद्रा कुमारी चौहान-
Aa rahi himalay se pukar
Hai udadhi garajata bar bar
Prachi pashchim bhoo nabh apar;
Pab poochh rahen hain dig-digant
Veeron ka kaisa ho Basant
Phooli sarason ne diya rang
Madhu lekar aa pahuncha anng
Vadhu vasudha pulakit ang ang
Hai vir desh men kintu knt
Veeron ka kaisa ho Basant
Bhar rahi kokila idhar tan
Maaroo baje par udhar gaan
Hai rang aur ran ka vidhan
Milane ko aaye hain aadi ant
Veeron ka kaisa ho Basant
Galabahen hon ya kripan
Chal-chitavan ho ya dhanushaban
Ho ras-vilas ya dalitatran
Ab yahi samasya hai durnt
Veeron ka kaisa ho Basant
Kah de atit ab maun tyag
Lanke tujhmein kyon lagi ag
Aye kurukshetr ab jag jag
Batala apane anubhav annt
Veeron ka kaisa ho Vasant
Haldighati ke shila khand
Ai durg sinhagadh ke prachnd
Rana tana ka kar ghamnd
Do jaga aj smritiyan jvalnt
Veeron ka kaisa ho Vasant
Bhooshan athava kavi chand nahin
Bijali bhar de vah chhand nahin
Hai kalam bandhi svachchhnd nahin
Phir hamen batae kaun? hant
Veeron ka kaisa ho Basant
-Subhadra Kumari Chauhan
तो दोस्तों- यह थी बचपन में पढ़ी गई कुछ चुनिंदा TOP 20 Best hindi kavitayen, hindi kavitayen, hindi ki kavitayen, best kavitayen in hindi अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो इसे, अपने बचपन के दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर करें हमारे ब्लॉग पर विजिट करने के लिए आपका ~ धन्यवाद ~ आपका दिन शुभ हो ~ जय हिंद ~You May Also Like✨❤️👇
पापा क्यों अच्छा लगता है
अपना प्यारा-प्यारा घर?
घूम-घाम लें, खेल-खाल लें
नहीं भूलता लेकिन घर।
नहीं आपको लगता पापा
है माँ की गोदी-सा घर,
प्यारी-प्यारी ममता वाला
सुंदर-सुंदर न्यारा घर।
थककर जब वापस आते हैं
कैसे बिछ-बिछ जाता घर,
खिला-पिला आराम दिलाकर
नई ताजगी देता घर।
पर पापा, इक बात बताओ
नहीं न होता सबका घर,
क्या करते होंगे वे बच्चे
जिनके पास नहीं है घर?
- डॉ. दिविक रमेश
papa kyon achchha lagata hai
apana pyara-pyara ghar?
ghoom-ghaam len, khel-khaal len
nahin bhulata lekin ghar.
nahin aapako lagata papa
hai maa ki godi-sa ghar,
pyaari-pyaari mamata wala
sundar-sundar nyaara ghar.
thakakar jab wapas aate hain
kaise bichh-bichh jaata ghar,
khila-pila aaraam dilaakar
nai taajagi deta ghar.
par paapa, ik baat batao
nahin na hota sabaka ghar,
kya karate honge ve bachche
jinake paas nahin hai ghar?
- dr. divik ramesh
20. वीरों का कैसा हो बसंत ( बेस्ट हिंदी कविताएं)
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
- सुभद्रा कुमारी चौहान-
Aa rahi himalay se pukar
Hai udadhi garajata bar bar
Prachi pashchim bhoo nabh apar;
Pab poochh rahen hain dig-digant
Veeron ka kaisa ho Basant
Phooli sarason ne diya rang
Madhu lekar aa pahuncha anng
Vadhu vasudha pulakit ang ang
Hai vir desh men kintu knt
Veeron ka kaisa ho Basant
Bhar rahi kokila idhar tan
Maaroo baje par udhar gaan
Hai rang aur ran ka vidhan
Milane ko aaye hain aadi ant
Veeron ka kaisa ho Basant
Galabahen hon ya kripan
Chal-chitavan ho ya dhanushaban
Ho ras-vilas ya dalitatran
Ab yahi samasya hai durnt
Veeron ka kaisa ho Basant
Kah de atit ab maun tyag
Lanke tujhmein kyon lagi ag
Aye kurukshetr ab jag jag
Batala apane anubhav annt
Veeron ka kaisa ho Vasant
Haldighati ke shila khand
Ai durg sinhagadh ke prachnd
Rana tana ka kar ghamnd
Do jaga aj smritiyan jvalnt
Veeron ka kaisa ho Vasant
Bhooshan athava kavi chand nahin
Bijali bhar de vah chhand nahin
Hai kalam bandhi svachchhnd nahin
Phir hamen batae kaun? hant
Veeron ka kaisa ho Basant
-Subhadra Kumari Chauhan
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