Sufi Surendra Chaturvedi Shayari in Hindi | सूफ़ी सुरेंद्र जी की चतुर्वेदी शायरी

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surendra chaturvedi shayari in hindi नमस्कार दोस्तों आज का यह आर्टिकल, सूफ़ी सुरेंद्र चतुर्वेदी जी के गजलों पर आधारित है राजस्थान के अजमेर में जन्मे सुरेंद्र चतुर्वेदी जी की अब तक सात गजल संग्रह, 15 कहानियां, और एक उपन्यास ,अंधा अभिमन्यु, प्रकाशित हो चुकी है| 

चतुर्वेदी जी ने हिंदी फिल्मों- घात, कहीं नहीं, लाहौर, अनवर, में इनके द्वारा लिखे गए गीतों को शामिल किया गया है, सुरेंद्र चतुर्वेदी जी के गजलों को कोई भी एक बार पढ. या सुन ले तो वह इनका मुरीद हो जाता है| 

तो चलिए पढ़ते हैं ,सूफ़ी सुरेंद्र चतुर्वेदी, जी की लिखी हुई कुछ चुनिंदा गजलें..  sufi surendra chaturvedi quotes

सूफ़ी, सुरेंद्र चतुर्वेदी की मशहूर ग़ज़लें

वो देखने में बेवफ़ा लगता तो नहीं है

surendra chaturvedi shayari vo dekhne me bewafa
surendra chaturvedi shayari in hindi

वो देखने में बेवफ़ा लगता तो नहीं है
चेहरे पे उसके देखिए चेहरा तो नहीं है
दरिया किनारे रेत पे उसने लिखा है कुछ,
मैं सोचता हूँ नाम वो मेरा तो नहीं है
वो फिर किसी के प्यार में डूबा है इन दिनों,
ये फिर किसी ग़रीब का सपना तो नहीं है
ढूँढू उसे तो चैन-सा मिलता है रूह को,
वरना वो मेरे शहर में रहता तो नहीं है
रक्खा मुझे सहेज कर जिसने तमाम उम्र,
कहने को उससे यूँ मेरा रिश्ता तो नहीं है

ख़्वाबों के साथ रात का मंज़र मज़े में है - सुरेंद्र चतुर्वेदी गजल

khwabo ke saath raat ka manzar
surendra chaturvedi shayari hindi

ख़्वाबों के साथ रात का मंज़र मज़े में है,
चादर मेरी मज़े में है बिस्तर मज़े में है।

जो चुभ रहा था बरसों से पत्थर की आँख में,
शीशे के घर को तोड़ वो पत्थर मज़े में है।

जब तक रहा था मैं तो थीं बरबादियाँ बहुत,
निकला हूँ जब से मैं तो मेरा घर मज़े में है।

सजदे का ये कमाल भी कैसा है देख तू,
मेरा झुका है सर तो तेरा दर मज़े में है।

मेरी अना ने मुझको ख़बर दी है आज ये,
कटने के बाद भी तो मेरा सर मज़े में है।

जब से सुना है प्यास ने कर ली है ख़ुदकुशी,
दरिया के साथ-साथ समंदर मज़े में है।

बेहाल दर्द से हूँ मैं उसको ख़बर नहीं,
जब से चुभा है पाँव का नश्तर मज़े में है

ढह गया वो घर जिसे पुख़्ता समझ बैठे थे हम - Sufi Surendra Chaturvedi Best Shayari

dah gaya wo ghar jise pukhta samajh baithe
sufi surendra chaturvedi dah gaya wo ghar

ढह गया वो घर जिसे पुख़्ता समझ बैठे थे हम ,
किस यक़ीं पर आपको अपना समझ बैठे थे हम ।

दूसरी दुनिया कहीं पर है कभी सोचा न था,
आपकी दुनिया को ही दुनिया समझ बैठे थे हम ।

साथ जो चलता रहा वो दूसरा ही जिस्म था,
भूल से अपना जिसे साया समझ बैठे थे हम ।

हमज़बाँ, हमराज़, हमदम, हमसफ़र और हमनशीं,
क्या बताएँ आपको क्या-क्या समझ बैठे थे हम ।

आपकी फ़ितरत के चेहरे थे कई समझे नहीं,
जो था शाने पर उसे चेहरा समझ बैठे थे हम ।

आप ख़ुद जैसे थे वैसा ही हमें समझा किए,
ख़ुद थे जैसे आपको वैसा समझ बैठे थे हम ।

सोचते हैं अब कि कैसे बेख़ुदी में आपको,
अपनी तन्हा उम्र का रस्ता समझ बैठे थे हम

दुनिया भर के दर्द भरे अफ़साने हंसने लगते हैं - Surendra Chaturvedi famous shayari


दुनिया भर के दर्द भरे अफ़साने हंसने लगते हैं,
जब भी रोता हूँ मुझपर दीवाने हंसने लगते हैं।

मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर,गुरुद्वारों का तो नहीं पता,
देख के मुझको दुनिया के मयख़ाने हंसने लगते हैं।

तन्हाई में जब भी अपने सूनेपन को छूता हूँ,
नज़र मिला कर मुझपर कुछ वीराने हंसने लगते हैं।

इस सर्दी में हाथ कटेगा जब -जब भी लगता मुझको,
मेरी मेज़ पे रखे हुए दस्ताने हंसने लगते हैं।

दिल पर पत्थर सा मुझको महसूस हुआ करता है तब,
मुझको देख के जब-जब भी बुतखाने हंसने लगते हैं।

अपने पैरों से जब मेरी चादर छोटी लगती है,
तब कबीर के मुझ पर ताने-बाने हंसने लगते हैं।

अपनी भूख़ को लेकर पंछी जब भी आते हैं घर पर,
मेरी छत के ऊपर फैले दाने हंसने लगते हैं।

क्यों दुश्मनी वो मुझसे निभाकर उदास था - सुरेंद्र चतुर्वेदी की शायरी

kyu dushmani wo mujhse nibhakar udash tha
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क्यों दुश्मनी वो मुझसे निभाकर उदास था,
जो शख्श मेरे घर को जलाकर उदास था।

चेहरे पे मेरे देखना चाहा था उसने क्या,
आईना मुझको क्यों वो दिखाकर उदास था।

जाने हुआ ये क्या के मुझे छोड़ने के बाद,
दौलत ज़माने भर की कमा कर उदास था।

मेरी दुआ में कुछ तो कमी रह गई तभी,
हक़ में वो मेरे हाथ उठा कर उदास था।

नाराज़गी मुझसे बड़ी महंगी पड़ी उसे,
ख़ुशियों को अपने दिल में बसा कर उदास था।

ग़ज़लों में मेरी जाने क्या आया उसे नज़र,
शेरों पे तालियाँ वो बजा कर उदास था।

नज़दीकतर थे कितने और कैसे थे वो हबीब ,
जिनके क़रीबतर भी वो जाकर उदास था।

चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में - सुरेंद्र चतुर्वेदी गजल

chadh na saka dariya abhi rawani
sufi surendra chaturvedi quotes hindi 

चढ़ ना सका था दरिया अभी रवानी में।
डूब गए कुछ लोग मुख़्तसर पानी में।

किरदारों ने अपनी क़ीमत माँगी है,
यही हुआ है अक्सर मेरी कहानी में।

कभी ना पहुँचे ताबीरों की बस्ती में,
सपने टूटे नींदों की निगरानी में।

कुछ तो हमको अपनी ज़िद ही ले बैठी,
कुछ तुम भी मशगूल रहे मनमानी में।

तुमने तो आसान रास्ता दिखा दिया,
कितनी मुश्किल मिली मगर आसानी में।

जिसको चाहा शिद्दत से महसूस किया,
नहीं मोहब्बत हमने की नादानी में।

जिनको बहारें रास ना आईं क्या जानें,
कितने हम ख़ुशहाल रहे वीरानी में।

रूठे रिश्तों को फिर मनाने की - Sufi Surendra Chaturvedi Shayari 


रूठे रिश्तों को फिर मनाने की,
बात करते हो किस ज़माने की।

एक दस्तूर सा है जो रिश्ता,
मेरी ज़िद है उसे बचाने की ।

छोड़ना गर तुम्हारा है मक़सद ,
क्या ज़रूरत है पास आने की।

फ़ितरते हैं तुम्हारी पंछी सी,
है ज़रूरत तो घर बसाने की।

जान कर भी सफ़र है रस्तों का,
बात करता हूँ क्यों ठिकाने की।

मैं सितम सोच के ये सहता रहा,
हद भी आएगी ज़ुल्म ढाने की।

होगा तक़सीम जो दुआओं में,
मैं अशर्फी हूँ उस ख़ज़ाने की।

ख़ुद को कितनी दूर उड़ाया करते हैं - सूफ़ी सुरेंद्र चतुर्वेदी शायरी

ख़ुद को कितनी दूर उड़ाया करते हैं,
आसमान का साथ निभाया करते हैं।

होकर मुझसे ख़फ़ा गए थे जो पंछी,
पिंजरे से आवाज़ लगाया करते हैं।

दिलों में हमने अब अपना घर बना लिया,
दुआ में रहकर वक़्त बिताया करते हैं।

मिलकर भी जो देते हैं बस बेचैनी,
उनसे भी हम मिलने जाया करते हैं ।

अपनी-अपनी छत पर पहली बारिश में,
वो हमको हम उन्हें बुलाया करते हैं।

जब औक़ात पूछते हैं तूफाँ हमसे,
हम काग़ज़ की नाव बनाया करते हैं।

इसी शौक़ ने हमको ज़िन्दा रक्खा है,
दीवानों को ग़ज़ल सुनाया करते हैं।

इसके उसके ,किस किस के अफ़साने रोते रहते हैं - Surendra Chaturvedi Famous Shayari in Hindi


इसके उसके ,किस किस के अफ़साने रोते रहते हैं,
जाने कितने दर्द मेरे सिरहाने रोते रहते हैं।

दिखने वाले चेहरों की तुम हँसी-ख़ुशी पर मत जाओ,
हंसते-गाते महलों के तहख़ाने रोते रहते हैं।

ख़ालीपन का मुझमें तो अहसास सुलगता रहता है,
मयख़ानों में भरे हुए पैमाने रोते रहते हैं।

उसकी हंसी में जाने कितने राज़ छिपे होंगे यारो,
जिसकी हँसी में जंगल के वीराने रोते रहते हैं।

अपना दर्द छिपाना भी आसान कहाँ पर होता है,
हंसते दिखते हैं लेकिन दीवाने रोते रहते हैं।

कभी-कभी तो ग़म की घड़ी में हो जाता है ऐसा भी,
अपने चुप हो जाते हैं बेगाने रोते रहते हैं।

बढ़ता रहता हूँ मैं हरदम उंगली और अँगूठे से,
मैं हूँ वो तस्बीह के जिसके दाने रोते रहते हैं।

आशियाँ मेरा जलाकर बिजलियाँ रोती रहीं - Sufi Surendra Chaturvedi Best Shayari

आशियाँ मेरा जलाकर बिजलियाँ रोती रहीं ,
उम्र भर मुझमें किसी की सिसकियाँ रोती रहीं.

शोर तो गुम हो गया गलियों में ढ़लती शाम तक,
रात भर लेकिन हज़ारों चुप्पियाँ रोती रहीं .

सूखते दरिया पे उड़ते बादलों को देख कर,
क्या बताऊँ मुझमें कितनी मछलियाँ रोती रहीं .

कब समंदर देखता है मुड के पीछे रेत को,
बे-ख़बर इस बात से कुछ सीपियाँ रोती रहीं.

दंग हूँ में किसलिए फूलों का दामन छोड़ कर,
मेरी ख़ुशबू से लिपट कर तितलियाँ रोती रहीं.

कांपते हाथों से ख़त तो लिख दिया उसको मगर,
देर तक तन्हाईओं में उंगलियाँ रोती रहीं.

सामने आया तो उसके माज़रा ये भी हुआ,
खूबियाँ अपनी गिना कर ग़लतियाँ रोती रहीं.

उम्र भर वो बुझते शोलों को हवा देता रहा - सुरेंद्र चतुर्वेदी गजल

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उम्र भर वो बुझते शोलों को हवा देता रहा,
घर में अपने आंधियों को आसरा देता रहा.

उसने रिश्तों में मुझे जो कुछ दिया सब भूलकर
दिल बुजुर्गों की तरह उसको दुआ देता रहा.

जानता था लौटकर वापस सदा आ जाएगी
फिर भी मैं अंधी गुफाओं में सदा देता रहा.

क्या ग़ज़ब कि़स्मत थी मेरी सोचता हूँ आज भी
मुझसे सब कुछ छीनकर, सबको ख़ुदा देता रहा.

जिनकी मंजि़ल मैं नहीं हूँ ये हक़ीक़त जानकर
ये तो मैं ही था कि उनको रास्ता देता रहा.

उनको ख़ुशियाँ उम्र भर मिलती रहें ये सोचकर
रंजो ग़म को अपने घर का मैं पता देता रहा.

उम्र भर रिश्ते निभाये इस तरह से दोस्तों
ग़लतियां जिनकी भी हों ख़ुद को सज़ा देता रहा

ये नहीं कि नाव की ही ज़िन्दगी खतरे में है - सुरेंद्र चतुर्वेदी की शायरी

ये नहीं कि नाव की ही ज़िन्दगी खतरे में है
दौर है ऐसा कि अब पूरी नदी खतरे में है

बच गए मंज़र सुहाने फर्क क्या पड़ जाएगा
जबकि यारों आँख की ही रोशनी खतरे में है

अब तो समझो कौरवों की चाल नादां पाँडवों
होश में आओ तुम्हारी द्रोपदी खतरे में है

अपने बच्चों को दिखाओगे कहाँ अगली सदी
जी रहे हो जिसमें तुम वो ही सदी खतरे में है

मंदिरों और मस्जिदों को घर के भीतर लो बना
वरना खतरे में अज़ाने आरती खतरे में है

ना तो नानक ना ही ईसा, राम ना रहमान ही
पूजता है जो इन्हें वो आदमी ख़तरे में है

रूप हो जितना श्याम सलोना मिट्टी का - सूफ़ी सुरेंद्र चतुर्वेदी शायरी

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रूप हो जितना श्याम सलोना मिट्टी का,
रहता है वो मगर खिलौना मिट्टी का।

अश्क़ों में बेकार डुबोना मिट्टी का,
चार दिनों का रोना-धोना मिट्टी का।

फूलों की सेज़ों पर अ सोने वालों,
आख़िर दम है सिर्फ़ बिछौना मिट्टी का।

खेल तामाशे मिट्टी ही दिखलाती है,
भरमाता है जादू-टोना मिट्टी का।

साँसों के ही साथ ख़ज़ाने चलते हैं,
साँस रुके बस चांदी-सोना मिट्टी का।

मिट्टी उड़ जाती है मुट्ठी खुलते ही,
होना क्या और क्या न होना मिट्टी का।

मिट्टी की दीवार में चलता रहता है,
जागना-सोना ,हँसना -रोना मिट्टी का।

जो बोते हैं कहाँ काट पाते हैं हम,
खेल है ये मिट्टी में बोना मिट्टी का।

सहराओं का साथ निभाना भूल गया - Surendra Chaturvedi Famous Shayari in Hindi

सहराओं का साथ निभाना भूल गया,
दरियाओं का दिल बहलाना भूल गया.

इतना भी जल्दी मैं क्या था जाने की,
जाते जाते हाथ मिलाना भूल गया,

नए -नए जब ज़ख्म आ लगे सीने से,
मैं भी अपना ज़ख्म पुराना भूल गया .

है अफ़सोस मुझे भी तेरी यादों का,
रख कर जाने कहाँ खजाना भूल गया .

किसी मोड पर मिले तो ना पहचानेंगे ,
बात यही खुद को समझाना भूल गया.

जिसे किया आबाद मेरी तन्हाई ने,
मुझको अब वो ही वीराना भूल गया.

वो भी मुझको दिला ना पाया याद कभी,
मैं भी उसको याद दिलाना भूल गया

शौहरत अन्धा कर देती है - Sufi Surendra Chaturvedi Shayari in Hindi


शौहरत अन्धा कर देती है,
फिर वो तन्हा कर देती है।

पाक नहीं हो अगर मुहब्बत,
इक दिन रुसवा कर देती है।

ख़्वाहिश छोटी सी भी हो तो,
जाने क्या-क्या कर देती है।

यादें ही क़िरदार हैं असली,
उम्र तो पर्दा कर देती है।

बदनीयत ही हर रिश्ते में,
खाई पैदा कर देती है।

एक अदद इंसा की मेहनत,
सपना सच्चा कर देती है।

अच्छाई हर ज़ख़्म को आख़िर,
फिर से अच्छा कर देती है।

उड़ने को अम्बर भी दे - Sufi Surendra Chaturvedi Shayari in Hindi

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उड़ने को अम्बर भी दे,
लेकिन पहले घर भी दे।

सच्चाई गर दे दी है,
कटने वाला सर भी दे।

ख़ौफ़ज़दा मत कर लेकिन,
ख़ुद को ख़ुद का डर भी दे।

बीनाई से होगा क्या,
रूहानी मंज़र भी दे।

जो सवाल पूछे तूने,
अब उनका उत्तर भी दे।

मन्नत मांग रहा कबसे,
अब ये झोली भर भी दे।

या इस पार के या उस पार,
जो करना है कर भी दे।

हरी शाख़ से झर जाऊँ क्या - Sufi Surendra Chaturvedi Best Shayari

हरी शाख़ से झर जाऊँ क्या,
मौत के डर से मर जाऊँ क्या।

जिधर मौत डरती जाने से,
अबकी बार उधर जाऊँ क्या।

अब ये बात हवा से पूछो,
ख़ुशबू हूँ तो बिखर जाऊँ क्या।

कश्ती से तो उतर गया अब,
नज़रों से भी उतर जाऊँ क्या।

जिस वादे पर जान टिकी है,
उससे कहो मुकर जाऊँ क्या।

सफ़र पे तुम तो निकल गए हो,
मैं भी अपने घर जाऊँ क्या।

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